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स्वैच्छिक (झूठा विश्वास)

शीर्षक स्वैच्छिक (झूठा विश्वास)


विश्वास शब्द अपने आप में एक बड़ा ही शब्द है और इस शब्द का अधिक महत्व भी है क्योंकि यह शब्द का प्रयोग दूसरो के प्रति उन पर किया जाता है और उन पर विश्वास करके अपने निजी कार्य या महत्वपूर्ण कार्य या कोई कार्य की जिम्मेदारी सौंपी जाती है और जो व्यक्ति हमारे विश्वास को जीत लेता है या हमारे यह कार्य को पुरा कर लेता है या हमारी यह जिम्मेदारी को पूरा कर लेता है तो हमारा विश्वास उसके प्रति अधिक बढ़ जाता हैं और हम इसी विश्वास के साथ ही उसको अपने कार्य देते रहते हैं।
आज की इस कहानी में ऐसे विश्वास के बारे में पड़ेंगे जो सिर्फ झूठा ही था।

कहानी शुरू होती है एक सीधे साधे लड़के से जिसका नाम योगेंद्र था और वह अपने जीवन में बहुत खुश रहता और उसका व्यवहार सभी के प्रति अच्छा रहता और सभी से प्रेमपूर्व बाते करता रहता था और सभी की इज्जत करना ,मान सम्मान करना यह उसकी आदत थी।
उसके व्यवहार को देखकर ,उसकी बातो को देखकर हर कोई उसके दोस्त बन जाया करते थे और वो भी दोस्त बनाने में रुचि रखता था क्योंकि उसका मानना था इस जीवन में दुश्मनी किस काम की उससे अच्छा दोस्ती ही ठीक है इसलिए जितने दोस्त बनते हैं बना लो।


"योगेंद्र की खास बात यह थी की वह जिनसे भी दोस्ती करता रहता था उनकी मदद हमेशा करता रहता था चाहे स्थिति कैसी भी हो और वो कभी भी अपने दोस्तो को उनके बुरे वक्त में उनके जरूरत के वक्त में अकेला नही छोड़ता था और वह उनके साथ हमेशा ही खड़ा रहता था और वो जब तक अपने दोस्तो के साथ रहता उन्हे किसी भी बात की चिंता होने नही देता था"।

दोस्तो की मदद करना ,उनके साथ रहना ,सुख में दुख में साथ खड़े रहना ,उनकी खुशियों में शामिल होना ,उनके दुखो में शामिल होना ,उनकी हिम्मत बनना ,उन्हे हिम्मत दिलाना ,उन्हे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना यह सब योगेंद्र के विचार शक्ति थी ।

बाकी सभी लोग भी योगेंद्र से दोस्ती करके अपनी चिंता मुक्त हो जाते थे क्योंकि वे जान चुके थे की योगेंद्र ने हमसे दोस्ती की है तो वो हम जैसे दोस्तो की मदद हमेशा ही करता रहेगा।
योगेंद्र दोस्ती करने से ही मतलब रखता था वो यह नही देखता की कौन उसका फायदा उठा रहा है कौन उसको मतलब के लिए प्रयोग कर रहा है क्योंकि वो दोस्ती में ही इन सभी बातो पर ध्यान देकर उनके रिश्तों को खराब नही करना चाहता था।

"जब जब योगेंद्र आगे बड़ता रहा तब तब उसके जीवन में नए दोस्त आते गए और जाते गए और वो सभी की मदद करता रहा उनके टच में रहता रहा और किसी भी तरह की कोई शिकायत नही होती रही और न ही उसे कोई समस्या होती रही"।

एक बार की बात है योगेंद्र के जीवन में कुछ ऐसे सच्चे दोस्त आए जिन पर योगेंद्र सच्चे दिल से विश्वास भी करने लगा और अपने हर काम अपने विश्वास के चलते हुए उन पर सौंपने लगा और उन्होंने भी पूरी इमानदारी दिखाते हुए योगेंद्र का काम पुरा किए और उसका विश्वास जीत गए।

योगेंद्र धीरे धीरे उन सच्चे दोस्तो पर आंख बंद करके भी विश्वास करता रहा और सभी ने विश्वास जीतते भी रहे और किसी ने भी किसी तरह की दगाबाजी नही की और न ही उनका विश्वास तोड़ा था।

कुछ सालो के बाद योगेंद्र का जीवन थोड़ा सा बदल गया था लेकिन जो चला आ रहा था वैसा ही हो रहा था और एक दिन योगेंद्र की दोस्ती सबसे पहले मयंक से हुई थी जो योगेंद्र के रिश्तेदारों के गांव का लड़का था और योगेंद्र ने उसको अपना सच्चा दोस्त बना लिया था।

"योगेंद्र और मयंक की दोस्ती को लगभग 2 साल हो गए थे और उसके बाद मयंक ने योगेंद्र के साथ कुछ ऐसा किया जिसकी कल्पना योगेंद्र ने भी नही की थी 
मयंक ने योगेंद्र से कुछ रुपए उधार मांगे थे और बोला था कि कुछ दिनों के बाद वापिस कर देगा और योगेंद्र ने सच्चा दोस्त है इसलिए उस पर पूरा विश्वास करके रुपए उधार दे दिए और मयंक ने जितना समय मांगा था उतने ही समय पर वापिस करने को कहा था भले ही कुछ दिन ज्यादा ही हो जाए तो चलेगा ऐसी बात योगेंद्र ने मयंक के सामने रखी"।

जब मयंक की समय सीमा समाप्त हुई तब मयंक ने योगेंद्र को उधार वाले रुपए वापिस नही किए और जब योगेंद्र ने यह बात मयंक से जाननी चाही तब मयंक ने कुछ समय और मांगा लेकिन उसका परिणाम नही आया।

धीरे धीरे करके 1 साल गुजर गया फिर 2 साल भी गुजर गया फिर 3 साल भी गुजर गया फिर 4 साल भी गुजर गया इस तरह से 4 साल गुजर जाने के बाद भी मयंक ने योगेंद्र को उधार वाले रुपए नही लौटाए और जब जब योगेंद्र ने अपने रुपए की बात की तब मयंक कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देता था पर उधार वाले रुपए कभी भी वापिस नही लौटाए।

इस तरह से योगेंद्र ने मयंक पर जो विश्वास किया था वो एक दम से झूठा विश्वास निकला झूठा विश्वास कहलाया और उस समय के बाद से अब तक योगेंद्र ने किसी को रुपए उधार नही दिए ।

मयंक वाली बातो को भूलकर योगेंद्र जीवन में आगे बड़ता रहा और  मयंक से अपने सारे रिश्ते नाते खत्म कर दिए।

"एक दिन योगेंद्र अपनी fb id चला रहा था जहा पर उसके कुछ लोग उसके दोस्त बन गए थे और उन्होंने भी अपनी दोस्ती का रंग एक दिन दिखा ही दिया था और उन्होंने धीरे धीरे करके योगेंद्र से कुछ रुपए उधार मांगना चाहे और मयंक की तरह ही कुछ समय में वापस करने को कहे तब योगेंद्र ने उनसे कहा की अभी तो मेरे पास रुपए नही है मुझे कुछ समय दे दो और सभी लोग उसको समय दे देते है"।

कुछ दिन योगेंद्र अपने मन मे थोड़ा सोच विचार करने के बाद में खुद से कहता है की वो लोग मेरे fb में ही दोस्त हैं और मैने उन्हे सामने से कभी देखा भी नहीं है और वे लोग कहा रहते है मुझे पता भी नहीं है और सच में उनकी id रियल वाली है या फर्जी है यह भी पता नहीं है और यदि मैं उन्हे विश्वास करके रुपए दे भी दू और वे लोग समय सीमा पर रूपए लौटाए ही नही तो मैं क्या करूंगा?,और मैने उनका घर ठिकाना कुछ भी नहीं देखा है तो उनके पास जाकर मांग भी नहीं सकता और उनका सामने से व्यवहार कैसा है यह भी नही जानता कही यह मुझे भी मयंक की तरह ही झूठे साबित न हो जाए और मयंक की तरह ही झूठा विश्वास न कर ले इसलिए मैं उन्हे मना ही कर देता हू यही मेरे लिए ठीक रहेगा।

"अगले दिन योगेंद्र उन सभी को मना कर देता है और वे सभी योगेंद्र को अपनी id से ब्लॉक कर देते है और योगेंद्र कहता है की अच्छा हुआ मैने इन्हे कुछ भी रुपए नही दिया क्योंकि यदि मैं इन्हें सच्चे विश्वास के साथ रुपए देता तो यह मुझको ब्लॉक कर देते और मेरे रूपये कभी भी नही लौटते इसलिए मैंने इन पर विश्वास किया ही नहीं अन्यथा यह भी मेरा विश्वास झूठा ही विश्वास साबित होता और मुझे अपने आप में बड़ा पछतावा होता"।


सबक किसी पर विश्वास करो यह अच्छी बात है लेकिन वो पूरे सच्चे विश्वास के काबिल होना चाहिए न की बदले में वह विश्वास झूठा ही निकले,  झूठा विश्वास कहलाए।


Bobby choudhary

प्रतियोगिता हेतु

   6
4 Comments

Mohammed urooj khan

15-Apr-2024 11:51 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Abhinav ji

13-Apr-2024 01:27 PM

Nice 👌

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kashish

12-Apr-2024 02:57 PM

V nice

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